Followers

Thursday 1 December 2011

शिव महापुराण -८

शिव महापुराण -८ 

Shiva Wallpaper

ऐसी साधना ह्रदय में करती सदा आलोक है ;
साधक को प्राप्त होता दिव्य शिव का लोक है ;
श्रवण-मनन का पुन: विस्तार से वर्णन किया ;
सूत जी ने ऋषि -कर्णों में था अमृत भर दिया  .

Shiva Wallpaper
प्रभु के दिव्य-गुणों को एकाग्रचित्त हो सुनना ;
दृढ -मति से सुन चित्त में सदा ही धरना ;
ये ''श्रवण'' है इसका तुम ध्यान सदा रखना ;
शिव के भक्त बनकर उद्धार अपना करना .


Shiva Wallpaper

श्रद्धा और भक्ति से शिव नाम जाप करना ;
''कीर्तन'' कहते इसे ;तुम स्मरण में रखना ;
रूप;गुण व् नाम का मन से जब चिंतन करो 
''मनन''कहते हैं इसे ;शिव स्वरुप उर में धरो .


Shiva Wallpaper

इन तीन विधियों से सदा जो शिव -आराधन में लगे ;
उसकी जीवन-नैय्या तो पार भव-सागर लगे ;
मैं सुनाता हूँ तुम्हे प्राचीन एक आख्यान ;
सूत जी बोले सुने होकर के सावधान .

Shiva Wallpaper

सरस्वती सरिता-तट पर तप कर रहे महान ;
ऐसे वेदव्यास जी से पूछते सनत्कुमार 
आप किस लक्ष्य  से कर रहे हैं तप यहाँ ?
वेदव्यास बोले बस मुक्ति है लक्ष्य मेरा .

Shiva Wallpaper


तब सनत्कुमार ने विनम्र हो बोले वचन 
पूर्व में मैंने भी तप को  माना था मुक्ति-सदन ;
मंदराचल पर मैं भी था तप बड़ा करने लगा 
तब नंदिकेश्वर ने ज्ञान मुझको ये दिया 

Shiva Wallpaper

तप को मुक्ति मार्ग कहना एक बड़ा अज्ञान है;
मुक्ति मन्त्र तो शिव-महिमा का श्रवण-गान है ;
इस  ज्ञान ने मिटा दी भ्रम की काली छाया ;
छोड़ मिथ्या-मार्ग को सत्य -पथ अपनाया .

Shiva Wallpaper

हे मुनियों  !व्यास  जी को जब  मिला ये ज्ञान ;
हो गया हर प्रश्न का उत्तम ही समाधान ;
दिव्य ज्ञान ने उनका मार्ग था प्रशस्त किया ;
सत्य-पथ पर चल सिद्धि रुपी फल उनको मिला .


Shiva Wallpaper


इस कथा को जब सुना मुनियों ने फिर से कहा 
सूत जी पुन: कहिये प्राणी का मुक्ति-मार्ग क्या ?
सूत जी उवाच -तीनो उपाय से शिव भक्ति करो 
और संग पवित्र लिंगेश्वर-स्थापना करो .

                                           [जारी ....]
                शिखा कौशिक 
       [भक्ति-अर्णव  ]


Sunday 30 October 2011

शिव महापुराण -७ [विद्येश्वर संहिता ]

शिव महापुराण -७ [विद्येश्वर संहिता ]
                                          
                                 
                                               [श्री गणेशाय नम: ] 




बहुत समय की  बात  है  शौनकादी  सज्जन  
प्रभास तीर्थ  में  किये  यज्ञ  का  आयोजन  
सूत  जी  का भी  हुआ  उसमे  शुभागमन  
उनसे  ऋषियों  ने  कहा  बतलाओ  -हे  भगवन !



कलियुग में जब धर्म का हो जायेगा लोप 
बढ़ जायेगा भ्रष्टता और पाप-कोप 
अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न आडम्बर चहुँ ओर
कैसे पकड़ेगा भला प्राणी सद्गति की डोर ? 



सूत जी बोले-सुनो हे ऋषियों मेरी बात 
प्राणी हित का प्रश्न कर किया मुझे कृतार्थ 
शिव-पुराण कलिकाल में हर लेगी  हर पाप 
सर्वोत्तम इस ग्रन्थ का अद्भुत है प्रताप . 



Lord Shiva


जैसे  रविकर का उदय फैलाकर प्रकाश 
हर लेता सम्पूर्ण तम ;धरा हो या आकाश 
उसकी भांति यह ग्रन्थ करता है उपकार 
इसके श्रवण से मिटता है पाप का अंधकार 

Lord Shiva


मत-भिन्नता को हरे ये वेदान्तों का सार 
होती शिवत्व की प्राप्ति जो कहे -सुने  एक  बार  
जीव-उर में जगाकर 'शिवोअहम ' की भावना  
आत्मतुष्टि देकर करे शिव रूप में स्थापना .

Lord Shiva


सूत  जी बोले पुन:- घटना सुनो प्राचीन 
कल्प के आरम्भ में ब्रह्मा थे सृष्टि-रचना लीन
तब उठी ऋषियों के मन में एक जिज्ञासा  प्रबल 
कौन सा पुराण श्रेष्ठ ?किससे मुक्ति-पथ सुगम ?  

Lord Shiva


सूत जी थे जानते  प्रश्न ये नहीं सरल 
मात्र एक पुराण को श्रेष्ठ कहना है विषम 
भक्ति,ज्ञान;बैराग से सभी पुराण हैं भरे 
श्रेष्ठ कह दें एक को ;कैसे ये साहस करें ?

God Shiva


आपसी विवाद से जब प्रश्न का मिला न हल 
ब्रह्मा जी के पास चल दिए ऋषि सकल 
बात सुन ऋषियों की ब्रह्मा जी के थे वचन 
बात जो मैं कह रहा इसको रखना स्मरण 
God Shiva


शिव ही महादेव हैं ;शिव ही आदिदेव
शिव को है ज्ञात सब ;शिव ही जगत देव 
मन तथा वाणी से भी उन तक पहुंचना है कठिन 
किन्तु अन्य देवों से  पूर्व होते हैं  प्रसन्न  .
God Shiva


इसलिए ऋषियों सुनो सुदीर्घ 'यज्ञ ' तुम करो 
तभी कहीं महादेव  के प्रसाद से झोली भरो  
हो गयी जो शिव कृपा ;उसका महान है असर 
ज्ञात होगी वेदोक्त विद्या -साध्य-साधन -रूपसर .

Lord Shiva


मुनियों के अनुरोध पर पुन:उवाच ब्रह्मा जी आराध्य 
शिव की सेवा साधन है;शिव प्राप्ति ही है साध्य 
इच्छारहित भाव से जो बनता शिव का सेवक 
श्रेष्ठ  ऐसा भक्त ही कहलाता  है साधक .
Lord Shiva


वेदोक्त विधिनुसार जब साधक करता शिव आराधना 
सफल तब होती साधक की परम -पद साधना 
भक्त को मिलता सदा फल भक्ति के ही अनुरूप है 
सालोक्य,सारूप्य ,सामीप्य,सायुज्य -मुक्ति भक्ति रूप है .
Lord Shiva


भक्ति के ये रूप स्वयं शिव ने ही बताएं हैं 
श्रवण, कीर्तन,मनन ,मुक्ति के उपाय हैं 
शिव-कथा सुनना; उनकी महिमा का गुणगान 
शिव-ईश्वरत्व का मनन -तीन हैं साधन महान  



God Shiva

तीनों साधनों का पालन करता साध्य-पूर्ति 
शिव में मन रमा, शिव कल्याण की है मूर्ति 
एक अन्य तथ्य तुमको समझना चाहिए 
क्यों गुरु से सर्वप्रथम कथा श्रवण करना चाहिए ?
Lord Shiva
गुरु है साक्षात् ब्रह्म ;जिस पर सहज विश्वास है 
उसके कहे हर शब्द से तृप्त ज्ञान-प्यास है 
इसलिए सर्वप्रथम गुरु से कथा श्रवण करो 
कीर्तन करो फिर  स्थिर -चित्त मनन करो .
                                                                    [......जारी ]


                                                                   शिखा कौशिक 
                                              [भक्ति अर्णव ]


Friday 19 August 2011

शिव महापुराण -6

शिव महापुराण -६




Shiva Wallpaper

कथा पूर्ण होने पर संत चरणों में गिरी ;
मुक्ति का उपाय उनसे पूछने वो  लगी ,
संत बोले ''शिव पुराण'' श्रवण ही उपाय है ;
पुण्य उदित होते हैं और पाप ये घटाए है .

Shiva Wallpaper

इसकी कथा के श्रवण से तुम पूर्ण मुक्ति पाओगी ;
राग-क्लेश मुक्त हो शांत-चित्त  हो जाओगी ,
साक्षात्-शिव ह्रदय में हैं अनुभव तुम्हे होगा यही ;
शिव मयी है ये जगत,शिव-शिव हैं हर कहीं .


Shiva Wallpaper

शिव पुराण स्वयं में शिव की दिव्य शक्ति है ;
गणेश-कार्तिकेय की मिलती इससे भक्ति है ,
चंचुला बोली प्रभु-इसकी कथा सुनाइए
मैं बड़ी हूँ पापिनी पाप से बचाइए .



Shiva Wallpaper

संत के निर्देश पर स्नान करके शुद्ध हुई ;
जटावल्कल   धारण कर कथा सुनी अमृतमयी ,
शिव की भक्ति में वो ऐसे लीन थी होती गयी
कथा श्रवण करते करते देह मुक्त वो भई .
Shiva Wallpaper

देह मुक्ति के अनन्तर शिव पुरी को वो गयी ,
गौरी शंकर के हुए दर्शन उसे महिमामयी ,
भक्त वत्सल शिव की लीला  होती सभी महान हैं ;
गौरी शंकर के ह्रदय में भक्त का स्थान है .


Shiva Wallpaper

माता गौरी ने उसे वरदान ये था दे दिया
'तुम रहो समीप मेरे 'मीठे वचनों में कहा ,
चंचुला को एक दिन पति-गति का पता चला ,
यातनाएं भोगता   पिशाच  yoni   में पडा  . 

Shiva Wallpaper

चंचुला ने माता से प्रार्थना फिर ये करी
मुक्ति दो मेरे पति को 'मात हे ममतामयी '
तुम्बरू  गन्धर्व को आदेश माता ने दिया
शिव पुराण की कथा विन्दुग को तुम दो सुना !



Shiva Wallpaper

तुम्बरू विन्ध्याचल पर सुनाने लगे अमृत कथा
विन्दुग के संग-संग श्रोता समूह भी आ जुटा,
कथा  श्रवण मात्र से विन्दुग का पाप कट गया ;
शिव ने उसे गणसमूह में गण का पद भी दे दिया .

Shiva Wallpaper

                 शिखा कौशिक

Sunday 31 July 2011

महाशिव पुराण-5

महाशिव पुराण 


सूत जी बोले  -सुनाता हूँ तुम्हे मैं एक कथा 
शिव भक्ति से विरत जीवन तो है एक व्यथा 
है पुरानी बात  ये समुद्र तट प्रदेश की
जिसके  निवासी मूर्ति थे दुष्टता के रूप की .

पशु प्रवर्ति पुरुष थे ,स्त्री व्यभिचारिणी
पुण्यहीन पुरुष और स्त्री पुण्य हारिणी
यहीं बसा था एक विदुंग  नाम ब्राह्मन
छोड़ सुन्दर भार्या वेश्या  से करता था रमण .

धीरे धीरे भार्या से उसकी विमुखता थी बढ़ी
पत्नी चंचुला पे भी काम की गर्मी चढ़ी
कामावेग से विवश धर्म-भ्रष्ट हो गयी
एक अन्य पुरुष के प्रेम में वो खो गयी .

जानकर ये बात विदुंग क्रोधाग्नि में जला
मारपीट करने को हो गया उत्सुक बड़ा
चंचुला ने तब उसे ये उलाहना था दिया
छोड़ मुझसी रूपसी क्यूँ वेश्या में था तू रमा ?

कैसे रोक सकती थी मैं कामना तूफ़ान को ?
काम पीड़ा नाग बन डस रही थी प्राण को
सुन चंचुला व्यथा विदुंग  के थे ये विचार
धन कमाने के लिए अब तुम करो उनसे बिहार .

पति की अनुमति पा व्यभिचार करने लगी
अधर्म को धर्म मान कुमार्ग पर चलने लगी
आयु पूर्ण होने पर विदुंग की मृत्यु  हो गयी
कुकर्म के फलस्वरूप पिशाच की योनि मिली .

चंचुला के रूप की धूप भी थी ढल गयी
गोकर्ण -प्रदेश में एक दिन थी वो गयी
एक मंदिर में कथा संत मुख से थी सुनी
दुष्कर्म के परिणाम  सुन मन में ग्लानि भर गयी .

                           [जारी ...]
            शिखा कौशिक




Tuesday 26 July 2011

शिव महापुराण [४ ]

शिव महापुराण [४ ]
शिव महापुराण श्रवण के लाभ हैं दिव्य महान 
इसके पूर्व शिव पुराण श्रवण -विधि को लें जान
शुभ मुहूर्त में सदा इसका श्रवण आरम्भ हो
मित्र-बंधु का स्वागत साथ में सानंद हो .

कथा श्रवण घर में या फिर शिवालय में करो
कथा के स्थान को स्वच्छ -सुसज्जित करो
केला और चंदोवा से मंडप को सज्जित कीजिये
उच्च पद प्रदान कर वक्ता को मान दीजिये .

वक्ता पूर्व मुख हो व् श्रोता का मुख उत्तर की ओर
श्रोता  वक्ता के प्रति श्रृद्धा की बांधे रखे डोर  
वक्ता को भी चित्त  अपना शांत रखना चाहिए
कथा वाचन काल में संयम से रहना चाहिए .

नित्य सूर्योदय के साढ़े तीन प्रहर कथा सुनाइए
भजन कीर्तन  से फिर समाप्त करना चाहिए
निरविघ्न  चले कार्य ये ;गणेश पूजन कीजिये 
यजमान  को शुद्ध -आचरण का निर्देश दीजिये .

शिव-पुराण वक्ता को शिव स्वरुप मानकर
यजमान श्रृद्धा भाव से उसको ही शिव स्वीकार कर
श्रवण-पुण्य पा रहा यजमान का सौभाग्य
पवित्र है पुराण ये पूजा के है योग्य .

शिव-मन्त्र जप हेतु पञ्च-ब्राह्मन नियुक्त कीजिये
कथा पूर्ण होने पर उन्हें अन्न वस्त्र दीजिये
कथा श्रवण काल में सचेत व् सजग रहें
हो गयी त्रुटि अगर तो शिव का कोप भी सहें .

कथा श्रवण काल में ये आचरण न कीजिये
कथा श्रवण काल में कुछ भक्षण न कीजिये
बड़ों  का निरादर और स्वयं पर अभिमान
इनसे सदैव मिलते हैं अशुभ ही परिणाम .
  
                             शिखा कौशिक

Thursday 21 July 2011

शिव महापुराण -[३]

शिव महापुराण -[३]


किरात  नगर  में  एक  ब्राह्मन  का  निवास  था 
आचारहीन उस मनुज में नैतिकता का न वास था 
मांस बेचने का नीच कर्म वो करने लगा 
घृणित आचरण से तिजोरियां भरने लगा .

तालाब में स्नान हेतु एक दिन जब वो गया 
तब वहां शोभावती को देख मुग्ध हो गया 
रूपवती वेश्या ने उसको था वश में कर लिया 
उसकी समस्त बुद्धि को पाप ने था हर लिया .

माता पिता और भार्या उसको सिखाते थे सतत 
ये कुकर्म मार्ग है इस पे चलना है गलत 
किन्तु उस दुर्बुद्धि ने उनका ही वध था कर दिया 
और सारा धन उस वेश्या पर लुटा दिया .

धनहीन जानकर करने लगी उपेक्षा 
कुकर्मी वेश्या से थी और क्या अपेक्षा ?
सब तरफ से हो निराश वो भटकने था लगा 
पाप कर्म की सजा वो भुगतने था लगा .

वो भटकता यत्र तत्र ज्वर से पीड़ित हो गया 
शिव के मंदिर पर वो पहुंचा ये थी भगवन की दया 
कह रहे थे साधु संत शिव पुराण की कथा 
जो सुनी थोड़ी सी उसने फिर वो अपने घर गया .

कुछ दिवस पश्चात् काल ग्रास  बन गया 
आये यम के दूत कर्मों की उसे  देने सजा 
शिव के दूत कर रहे यमदूतों का विरोध थे 
शिव पुराण सुन चुके उस ब्राह्मन के सुयोग थे .

शिव पुराण सुनने से इसका ह्रदय अब शुद्ध है 
कैलाश पर ले जाने के ये सर्वथा उपयुक्त है 
यमदूत और शिव के दूत अपनी बात पर अड़े 
संघर्ष हो रहा वहां प्रहार हो रहे कड़े .

सुनकर ये शोर धर्मराज को वहां आना पड़ा 
तर्क सुन शिव दूतों के फैसला किया बड़ा 
ले जाओ शिव के लोक सब बात मैं समझ गया 
ये पाप करते करते एक पुण्य भी है कर गया .

सूत जी बोले -शिव कृपा उस पर हुई 
शिव-महापुराण-श्रवण ऐसी ही अमृतमयी 
योगियों को भी अगम्य शिव लोक सहज हो गया 
भक्त वत्सल शिव ने उसको पाप-मुक्त कर दिया .

                                          शिखा कौशिक 
                          http://shikha-kaushik.blogspot.com



Monday 18 July 2011

शिव-महापुराण [२]



''शिव-महापुराण  [२]''






* शिव पुराण तो स्वयं शिव का ही स्वरुप है ;
प्रत्येक शिव का भक्त शिव का ही दूजा रूप है ;
चित्त शुद्धि-प्रेम वृद्धि इसके श्रवण के लाभ हैं ;
शिव भक्त के चरण स्वयं तीर्थ राज प्रयाग हैं

 *इसके पठन पाठन  से मिलते दिव्य सब वरदान हैं  ;
इससे प्राप्त फल राजसूय यज्ञ के समान है ;
इसलिए हे सूत जी! हमको भी थोडा ज्ञान दो 
शिव भक्ति शीतल जल में करने हमें स्नान दो .

*सूत जी बोले मधुर वाणी में शौनक जी सुनो 
जो मुक्ति प्यास हो सदा शिव भक्ति रस ही पियो ;
शिव महा पुराण शिव-मुख से है प्रकट  हुई 
मुक्ति मार्ग खोलती अमृत-सदृश भक्तिमयी .

*सात संहिताएँ और चौबीस हज़ार शलोक हैं ;
प्रत्येक संहिता से मिलता नया आलोक है ;
शिव का भक्ति रस मन में सदा ही घोलती ;
हर संहिता शिव-तत्व के रहस्य खोलती .

*विद्येश्वर;रूद्र और शतरुद्र संहिता 
कोटि रूद्र,उमा और कैलाश नाम संहिता 
वायवीय जोड़कर सात हैं ये  संहिता सकल 
इनसे युक्त शिव महापुराण का है यश धवल .

*शिव महापुराण करती है मनोरथ सब सफल 
इसकी शीतल छाँव से त्रिताप का होता शमन 
ये बढाती बल पुरुष का ;संकटों की हो घडी 
आत्मा मुक्ति की सीढ़ी इसकी शक्ति से चढ़ी .

*फिर से शौनक जी ने की सूत जी से प्रार्थना 
आज आप कथा -पुष्पों से करे ये अर्चना ;
उन सभी पवित्र जन की जिनकी होती वंदना 
हे प्रभु !कहिये कथा खोलकर मन अर्गला .

*चित्त शुद्धि का यही सबसे सरल उपाय है ;
आदर्श पुरुषों की प्रेरक सभी कथाएं हैं ,
ये प्रभु के चरणों में आस्था बढ़ाएं हैं ;
इनसे हीन जन मूर्ख -निस्सहाय  है .

*सूत जी बोले -हे शौनक जी!  सत्य है तुमने कहा 
शिव पुराण पठन पाठन हरता हर संकट महा ;
मैं सुनाता हूँ तुम्हे -ये कथा प्राचीन है ;
किन्तु इसकी अर्थवत्ता आज भी नवीन है .
                                                               [जारी .....]

                                   शिखा कौशिक 



Sunday 17 July 2011

'' शिव महापुराण ''



श्री गणेशाय नम: 
''हे गजानन! गणपति ! मुझको यही वरदान दो 
हो सफल मेरा ये कर्म दिव्य मुझको ज्ञान दो 
हे कपिल ! गौरीसुत ! सर्वप्रथम तेरी वंदना 
विघ्नहर्ता विघ्नहर साकार करना कल्पना ''
                     
''''सन्दर्भ  ''''
                                             ॐ नम : शिवाय !
                                            श्री सीतारामचन्द्रभ्याम नम :



                            
श्रवण मास के आरम्भ के साथ ही ह्रदय ''बम-बम भोले '' के उद्घोष से गूंज   उठता है .हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर १८ पुराणों में ''शिव महापुराण '' का विशेष महत्व है .मैंने भगवान गौरीशंकर की प्रेरणा से इसकी कथा को काव्य रूप में प्रस्तुत करने का एक प्रयास किया है .इसे पठन करने से यदि आपके ह्रदय में शिव भक्ति का एक क्षण के लिए भी उद्भव होता है और आप आनंद की अनुभूति करते हैं तब मैं अपने इस कार्य को सफल मानूंगी  .भगवान गौरी शंकर मेरी सहायता करें !


                              ''शिव महापुराण महिमा ''
*सकल ब्रह्माण्ड में है शिव -तत्व की ही सत्ता  
जीवन में सर्वत्र है शिव-शब्द की महत्ता 
एक शक्ति तीन रूप -सृजन-पालन-अंत
 शिवत्व-प्राप्ति ही मानव का ध्येय अनंत 


*शिव ही हैं कल्याणकारी;शिव ही सुन्दरतम ;
शिव ही सत्य रूप हैं ;शिव हैं प्रभु परम;
इस तत्व को जो जानते निर्मल उन्ही का मन 
शिव भक्ति रस में डूबते वे पुण्यशाली जन .

 * शौनक जी हैं पूछते कर विनम्र नमस्कार 
सूत जी बतलाइए पुराणों का कुछ तो सार

जिन पुराणों के श्रवण से मन का मैल छूटता 
भ्रमित मानव के ह्रदय को कल्याण मार्ग सूझता .  

* शिव-पुराण की कथा विस्तार से बतलाइये 
पाप  के इस युग-कुटिल से हमको भी बचाइये
मन के दोष दूर हो ; संतोष का निवास हो 
अल्पायु मृत्यु भय हटे ,शिव में अटल विश्वास हो .
[जारी .....]
                                                               
शिखा कौशिक 


Saturday 16 July 2011

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

आज ह्रदय से प्रभु तुम्हारा
अनुपम ध्यान मैं करती हूँ  ;
कलम बनेगी कमंडल मेरा
कविता से पूजा करती हूँ .
*********************
प्रभु  आपके अनुपम रूप को
शब्दों में कैसे लिख दूँ ;
यही सोचकर ह्रदय में मेरे
असमंजस -सी रहती है .
***********************
कोई तुमको भोला कहता
कोई कहता भूतनाथ  ;
मैं नाम तुम्हारा   क्या रख दूँ ?
तुम ही बतलाओ जगतनाथ .
************************

त्रिनेत्र हैं पास तुम्हारे   जब
मुझको क्यों जीवन -चिंता हो !
संकट मुझपर जब भी आये 
तब तुम ही सहायता करते हो .
*********************
नीले रंग का यह गात प्रभु
आकाश सद्रश ही लगता है ;
हो  गगन तुम्ही या तुम्ही गगन 
कौतुहल हर पल रहता .
***********************
मस्तक पर अर्ध -चन्द्र शीतल 
माँ गौरी बाएं विराज रही ;
नंदी अतिप्रिय तुम्हारे हैं 
गंगा जटा में है साज रही  .
***********************
एक   बार प्रभु मुख दर्शन ही 
सारी पीड़ा हर लेता है ;
सर्पों का जोड़ा ग्रीवा में 
अति  अद्भुत शोभा देता है .
*********************** जय भोलेनाथ !