शिव महापुराण -७ [विद्येश्वर संहिता ]
[श्री गणेशाय नम: ]
बहुत समय की बात है शौनकादी सज्जन
प्रभास तीर्थ में किये यज्ञ का आयोजन
सूत जी का भी हुआ उसमे शुभागमन
उनसे ऋषियों ने कहा बतलाओ -हे भगवन !
कलियुग में जब धर्म का हो जायेगा लोप
बढ़ जायेगा भ्रष्टता और पाप-कोप
अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न आडम्बर चहुँ ओर
कैसे पकड़ेगा भला प्राणी सद्गति की डोर ?
बढ़ जायेगा भ्रष्टता और पाप-कोप
अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न आडम्बर चहुँ ओर
कैसे पकड़ेगा भला प्राणी सद्गति की डोर ?
सूत जी बोले-सुनो हे ऋषियों मेरी बात
प्राणी हित का प्रश्न कर किया मुझे कृतार्थ
शिव-पुराण कलिकाल में हर लेगी हर पाप
सर्वोत्तम इस ग्रन्थ का अद्भुत है प्रताप . जैसे रविकर का उदय फैलाकर प्रकाश
हर लेता सम्पूर्ण तम ;धरा हो या आकाश
उसकी भांति यह ग्रन्थ करता है उपकार
इसके श्रवण से मिटता है पाप का अंधकार
मत-भिन्नता को हरे ये वेदान्तों का सार
होती शिवत्व की प्राप्ति जो कहे -सुने एक बार
जीव-उर में जगाकर 'शिवोअहम ' की भावना
आत्मतुष्टि देकर करे शिव रूप में स्थापना .
सूत जी बोले पुन:- घटना सुनो प्राचीन
कल्प के आरम्भ में ब्रह्मा थे सृष्टि-रचना लीन
तब उठी ऋषियों के मन में एक जिज्ञासा प्रबल
कौन सा पुराण श्रेष्ठ ?किससे मुक्ति-पथ सुगम ?
सूत जी थे जानते प्रश्न ये नहीं सरल
मात्र एक पुराण को श्रेष्ठ कहना है विषम
भक्ति,ज्ञान;बैराग से सभी पुराण हैं भरे
श्रेष्ठ कह दें एक को ;कैसे ये साहस करें ?
आपसी विवाद से जब प्रश्न का मिला न हल
ब्रह्मा जी के पास चल दिए ऋषि सकल
बात सुन ऋषियों की ब्रह्मा जी के थे वचन
बात जो मैं कह रहा इसको रखना स्मरण
शिव ही महादेव हैं ;शिव ही आदिदेव
शिव को है ज्ञात सब ;शिव ही जगत देव
मन तथा वाणी से भी उन तक पहुंचना है कठिन
किन्तु अन्य देवों से पूर्व होते हैं प्रसन्न .
इसलिए ऋषियों सुनो सुदीर्घ 'यज्ञ ' तुम करो
तभी कहीं महादेव के प्रसाद से झोली भरो
हो गयी जो शिव कृपा ;उसका महान है असर
ज्ञात होगी वेदोक्त विद्या -साध्य-साधन -रूपसर .
मुनियों के अनुरोध पर पुन:उवाच ब्रह्मा जी आराध्य
शिव की सेवा साधन है;शिव प्राप्ति ही है साध्य
इच्छारहित भाव से जो बनता शिव का सेवक
श्रेष्ठ ऐसा भक्त ही कहलाता है साधक .
वेदोक्त विधिनुसार जब साधक करता शिव आराधना
सफल तब होती साधक की परम -पद साधना
भक्त को मिलता सदा फल भक्ति के ही अनुरूप है
सालोक्य,सारूप्य ,सामीप्य,सायुज्य -मुक्ति भक्ति रूप है .
भक्ति के ये रूप स्वयं शिव ने ही बताएं हैं
श्रवण, कीर्तन,मनन ,मुक्ति के उपाय हैं
शिव-कथा सुनना; उनकी महिमा का गुणगान
शिव-ईश्वरत्व का मनन -तीन हैं साधन महान
तीनों साधनों का पालन करता साध्य-पूर्ति
शिव में मन रमा, शिव कल्याण की है मूर्ति
एक अन्य तथ्य तुमको समझना चाहिए
क्यों गुरु से सर्वप्रथम कथा श्रवण करना चाहिए ?
शिव में मन रमा, शिव कल्याण की है मूर्ति
एक अन्य तथ्य तुमको समझना चाहिए
क्यों गुरु से सर्वप्रथम कथा श्रवण करना चाहिए ?
गुरु है साक्षात् ब्रह्म ;जिस पर सहज विश्वास है
उसके कहे हर शब्द से तृप्त ज्ञान-प्यास है
इसलिए सर्वप्रथम गुरु से कथा श्रवण करो
कीर्तन करो फिर स्थिर -चित्त मनन करो .
[......जारी ]
शिखा कौशिक
[भक्ति अर्णव ]
उसके कहे हर शब्द से तृप्त ज्ञान-प्यास है
इसलिए सर्वप्रथम गुरु से कथा श्रवण करो
कीर्तन करो फिर स्थिर -चित्त मनन करो .
[......जारी ]
शिखा कौशिक
[भक्ति अर्णव ]
3 comments:
शिव ही महादेव हैं ;शिव ही आदिदेव
शिव को है ज्ञात सब ;शिव ही जगत देव
om Namah Shivay********
शिखा जी देवी की कृपा से आनंद आ गया ...बहुत आनंद दाई मन की सुकून और शान्ति देने वाला ...
जय शिव शंकर ...
शुभ कामनाएं
भ्रमर ५
ॐ नम: शिवाय, बहुत हि आनंद आया देविजी
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