''शिव-महापुराण [२]''
* शिव पुराण तो स्वयं शिव का ही स्वरुप है ;
प्रत्येक शिव का भक्त शिव का ही दूजा रूप है ;
चित्त शुद्धि-प्रेम वृद्धि इसके श्रवण के लाभ हैं ;
शिव भक्त के चरण स्वयं तीर्थ राज प्रयाग हैं
*इसके पठन पाठन से मिलते दिव्य सब वरदान हैं ;
इससे प्राप्त फल राजसूय यज्ञ के समान है ;
इसलिए हे सूत जी! हमको भी थोडा ज्ञान दो
शिव भक्ति शीतल जल में करने हमें स्नान दो .
*सूत जी बोले मधुर वाणी में शौनक जी सुनो
जो मुक्ति प्यास हो सदा शिव भक्ति रस ही पियो ;
शिव महा पुराण शिव-मुख से है प्रकट हुई
मुक्ति मार्ग खोलती अमृत-सदृश भक्तिमयी .
*सात संहिताएँ और चौबीस हज़ार शलोक हैं ;
प्रत्येक संहिता से मिलता नया आलोक है ;
शिव का भक्ति रस मन में सदा ही घोलती ;
हर संहिता शिव-तत्व के रहस्य खोलती .
*विद्येश्वर;रूद्र और शतरुद्र संहिता
कोटि रूद्र,उमा और कैलाश नाम संहिता
वायवीय जोड़कर सात हैं ये संहिता सकल
इनसे युक्त शिव महापुराण का है यश धवल .
*शिव महापुराण करती है मनोरथ सब सफल
इसकी शीतल छाँव से त्रिताप का होता शमन
ये बढाती बल पुरुष का ;संकटों की हो घडी
आत्मा मुक्ति की सीढ़ी इसकी शक्ति से चढ़ी .
*फिर से शौनक जी ने की सूत जी से प्रार्थना
आज आप कथा -पुष्पों से करे ये अर्चना ;
उन सभी पवित्र जन की जिनकी होती वंदना
हे प्रभु !कहिये कथा खोलकर मन अर्गला .
*चित्त शुद्धि का यही सबसे सरल उपाय है ;
आदर्श पुरुषों की प्रेरक सभी कथाएं हैं ,
ये प्रभु के चरणों में आस्था बढ़ाएं हैं ;
इनसे हीन जन मूर्ख -निस्सहाय है .
*सूत जी बोले -हे शौनक जी! सत्य है तुमने कहा
शिव पुराण पठन पाठन हरता हर संकट महा ;
मैं सुनाता हूँ तुम्हे -ये कथा प्राचीन है ;
किन्तु इसकी अर्थवत्ता आज भी नवीन है .
[जारी .....]
शिखा कौशिक
1 comment:
बहुत सार्थक व् आध्यात्मिक प्रस्तुति दे रही हैं आप आभार
Post a Comment