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Monday 10 February 2014

प्रेममय होकर मनुज बनता स्वयं भगवान् है !


जिसके वशीभूत हो प्रभु ने जगत ये रच दिया ,
कृष्ण की बंसी बजी किसने इसे ये सुर दिया ?
हर ह्रदय में बस रहा वो भाव जो वरदान है ,
पवित्र व् कल्याणमय ''प्रेम'' उसका नाम है !
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प्रेम की शक्ति से ही सृष्टि का ये विस्तार है ,
हर मनुज उर में सदा बहती यही रस-धार है ,
नलिनी-सम सौंदर्ययुक्त आकार-निराकार है ,
त्रिलोक की संजीवनी ये जगत आधार है ,
जिसके उदित होते मिटे स्वार्थ का अभिमान है !
पवित्र व् कल्याणमय ''प्रेम'' उसका नाम है !
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गौरा बनकर अर्पणा हो गयी भोलेनाथ की ,
लक्ष्मी-नारायण मिले श्रीराम संग हैं जानकी ,
कृष्ण-राधा के हुए मीरा हुयी घनश्याम की ,
ये सभी साकार रचना प्रीती-प्रेम भाव की ,
नारी-नर मिलन का हेतु भाव जो महाप्राण है !
पवित्र व् कल्याणमय ''प्रेम'' उसका नाम है !
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शब्दहीन जिसकी भाषा बोलते दो नैन हैं ,
कर्ण सुन रहें है सब रसना किन्तु मौन है ,
जो प्रिया के मुख -कमल पर लाली बन विराजती ,
प्रेम की ये भावना रूप को निखारती ,
श्रृंगार सुन्दरतम यही नयन -अभिराम है !
पवित्र व् कल्याणमय ''प्रेम'' उसका नाम है !
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द्वेष के खडग को जो आगे बढ़ के काटती ,
भेदभाव -खाई को भली प्रकार पाटती ,
पाप के समुन्द्र में फंस गए यदि कभी ,
पुण्य-नौका प्रीती की भव -निधि से तारती ,
व्यष्टि पर समष्टि की जीत ये महान है !
पवित्र व् कल्याणमय ''प्रेम'' उसका नाम है !
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त्याग व् कल्याण ही जिस पिता के पुत्र हैं ,
करुणा व् उदारता जैसी न अन्यत्र है ,
जो अहम् से मुक्त सर्वत्र जिसका मान है ,
सब भाव मिलकर पूजते देते इसे सम्मान हैं ,
अमृत -तुल्य ''प्रेम-पत्र'' मानवता की पहचान है !
पवित्र व् कल्याणमय ''प्रेम'' उसका नाम है !
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होली आई-होली आई प्रेम रंग चढ़ गया ,
राखियों के रूप में कलाई पर है बांध गया ,
ईद के मौके पे आ जो गले से लग गया ,
दीपावली में एक एक प्रेम दीप सज गया ,
है मनुज केवल मनुज हिन्दू न मुसलमान है !
पवित्र व् कल्याणमय ''प्रेम'' उसका नाम है !
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प्रेम श्रद्धा ,प्रेम-मान ,प्रेम-सदाचार है ,
प्रेम-दया ,प्रेम-कृपा ,प्रेम ही उपकार है ,
प्रेम-अनल ,प्रेम-अनिल ,प्रेममय संसार है ,
प्रेम-धरा ,प्रेम गगन ,प्रेम जल की धार है ,
प्रेम सम प्रेम ही प्रेम के समान है !
पवित्र व् कल्याणमय ''प्रेम'' उसका नाम है !
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जो सखा ,जो प्रिय ,जिसका ह्रदय में वास है ,
श्वास-श्वास में रमा जो अटल-विश्वास है ,
जो सुगंध प्रसून की , न बुझने वाली प्यास है ,
प्रेम-मानव देह में प्रभु का अमर-आभास है ,
प्रेममय होकर मनुज बनता स्वयं भगवान् है !
पवित्र व् कल्याणमय ''प्रेम'' उसका नाम है !
शिखा कौशिक 'नूतन'

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