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Thursday 21 July 2011

शिव महापुराण -[३]

शिव महापुराण -[३]


किरात  नगर  में  एक  ब्राह्मन  का  निवास  था 
आचारहीन उस मनुज में नैतिकता का न वास था 
मांस बेचने का नीच कर्म वो करने लगा 
घृणित आचरण से तिजोरियां भरने लगा .

तालाब में स्नान हेतु एक दिन जब वो गया 
तब वहां शोभावती को देख मुग्ध हो गया 
रूपवती वेश्या ने उसको था वश में कर लिया 
उसकी समस्त बुद्धि को पाप ने था हर लिया .

माता पिता और भार्या उसको सिखाते थे सतत 
ये कुकर्म मार्ग है इस पे चलना है गलत 
किन्तु उस दुर्बुद्धि ने उनका ही वध था कर दिया 
और सारा धन उस वेश्या पर लुटा दिया .

धनहीन जानकर करने लगी उपेक्षा 
कुकर्मी वेश्या से थी और क्या अपेक्षा ?
सब तरफ से हो निराश वो भटकने था लगा 
पाप कर्म की सजा वो भुगतने था लगा .

वो भटकता यत्र तत्र ज्वर से पीड़ित हो गया 
शिव के मंदिर पर वो पहुंचा ये थी भगवन की दया 
कह रहे थे साधु संत शिव पुराण की कथा 
जो सुनी थोड़ी सी उसने फिर वो अपने घर गया .

कुछ दिवस पश्चात् काल ग्रास  बन गया 
आये यम के दूत कर्मों की उसे  देने सजा 
शिव के दूत कर रहे यमदूतों का विरोध थे 
शिव पुराण सुन चुके उस ब्राह्मन के सुयोग थे .

शिव पुराण सुनने से इसका ह्रदय अब शुद्ध है 
कैलाश पर ले जाने के ये सर्वथा उपयुक्त है 
यमदूत और शिव के दूत अपनी बात पर अड़े 
संघर्ष हो रहा वहां प्रहार हो रहे कड़े .

सुनकर ये शोर धर्मराज को वहां आना पड़ा 
तर्क सुन शिव दूतों के फैसला किया बड़ा 
ले जाओ शिव के लोक सब बात मैं समझ गया 
ये पाप करते करते एक पुण्य भी है कर गया .

सूत जी बोले -शिव कृपा उस पर हुई 
शिव-महापुराण-श्रवण ऐसी ही अमृतमयी 
योगियों को भी अगम्य शिव लोक सहज हो गया 
भक्त वत्सल शिव ने उसको पाप-मुक्त कर दिया .

                                          शिखा कौशिक 
                          http://shikha-kaushik.blogspot.com



2 comments:

Shalini kaushik said...

सुन्दर प्रयास बधाई

तेजवानी गिरधर said...

वाह, मैं आपकी किन शब्दों में तारीफ करूं